Saturday, December 20, 2008

ज़िन्दगी के मोड़ पर


मैं पथों पर यु ही चलता रहा

ज़िन्दगी के तकाजों पर खुद को ढलता रहा

लेकिन समय ने करवटें ली

और ज़िन्दगी की पथ ही बदल दी ll


बचपन के नादानियों को अब्

जिम्मेदारियों में बदल दिया l

पर करता भी क्या

आखिर ज़िन्दगी ने खुद यूँ ही

जीने का फैसला जो कर लिया ll
नए लोग,नयी राहों से मिलता रहा

और नयी अनुभवों पर अपनी बुनियाद

कायम करता गया l

झंझावातों से लड़ते हुए अपनी

शक्ति बढ़ता गया लेकिन कभी अपने को मिटने नहीं दिया ll

मौसम बदलते रहे,

हालत सुलझते रहे,

बसंत के मोड़ पर और शीत के अवसान पर

लगा जैसे की ठहर गया l

लेकिन करता भी क्या,

आखिर ज़िन्दगी ने खुद यूँ ही जीने का फैसला जो कर लिया II

वक्त के पन्ने पलटकर फिर

वो हसीं लम्हें जीने का मन करता रहा

परन्तु इस बदलाव की बयार मे

खुद ही बह गया ,

उन लम्हों ने सिखाया बहुत लेकिन

वक्त बीत जाने के बाद ll
उन बीते लम्हों से एक नयी

सुबह अंकुरित हुयी ,पर उस सुबह खुद को ऐसे

भंवर-जाल में पाया जहां सिर्फ

मैं था और कुछ नहीं l

पर करता भी क्या ,

आखिर ज़िन्दगी ने यूँ ही जीने का फैसला जो कर लिया ll

1 comment:

Unknown said...

its actually very insightful.........shows your remarks on changing faces of life......excellent...